हसीन वादियों के बीच भक्ति का पावन स्थान रजरप्पा
- रामानुग्रह प्रसाद नारायण मिश्र
जंगलों व पहाड़ों की हसीन वादियों के बीच भक्ति
के किसी पावन स्थान की खोज में हों तो
प्रसिद्ध शक्तिपीठ रजरप्पा में आपका स्वागत है।
यहां मां छिन्नमस्तिका के मंदिर में पूजा-पाठ
के साथ आप पहाड़ी पत्थरों के बीच उछलकूद
मचाती दामोदर और भैरवी नदियों के संगम का
विहंगम दृश्य करीब से महसूस कर सकते हैैं।
झारखंड की राजधानी रांची से कऱीब
80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित मां
छिन्नमस्तिका का मंदिर धार्मिक महत्व के साथ
पर्यटन के लिहाज से भी एक अनुपम स्थान है।
प्रकृति के सुरम्य नजारों के बीच बसा भक्ति का
यह पावन स्थान खुद में कई खूबियां समेटे है।
दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर बसा यह
धर्म क्षेत्र सैलानियों को पहली नजर में ही
लुभाता है। रामगढ़ जिले में स्थित यह क्षेत्र
कोयला उत्पादन के लिए भी जाना जाता है।
रामगढ़ को बोकारो व धनबाद से जोडऩेवाली
एनएच 23 पर रामगढ़ से करीब 25 किलोमीटर
की दूरी पर यह रजरप्पा मोड़ है। इस मोड़ से
बोकारो शहर की दूरी 58 किलोमीटर है,
जबकि मोड़ से रजरप्पा मंदिर की दूरी
10 किलोमीटर है। मोड़ पर बना बड़ा सा प्रवेश द्वार
यहां पहुंचते ही सैलानियों का स्वागत
करता है। मंदिर की ओर बढ़ते ही सड़क
के दोनों ओर जंगल
और छोटी-छोटी पहाडिय़ों की शृंखला प्रकृति
के अनुपम नजारों के साथ अपनी विशिष्टता का
बोध कराती है। रास्ते में ही सीसीएल की
खुली खदान और सीसीएल कोल वाशरी भी है।
सीसीएल प्रोजेक्ट होने की वजह से इस
क्षेत्र की कोयला उत्पादक क्षेत्र के रूप में भी पहचान
है। प्राचीन काल में यह स्थान
मेधा ऋषि की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। हालांकि
वर्तमान में उनसे जुड़ा कोई चिन्ह यहां नजर नहीं आता।
श्रीयंत्र के स्वरूप का मंदिर
मां छिन्नमस्तिका 10 महाविद्याओं में
छठा रूप मानी जाती है। यह मंदिर
दामोदर-भैरवी संगम
के किनारे त्रिकोण मंडल के योनि
यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा
मंदिर श्री यंत्र का आकार
लिए हुए है। लाल-नीले और सफेद
रंगों के बेहतर समन्वय से मंदिर बाहर से
काफी खूबसूरत लगता
है। इसी परिसर में अन्य नौ महाविद्याओं
का भी मंदिर बनाया गया है। मुख्य मंदिर में देवी
छिन्नमस्तिका की काले पत्थर में उकेरी गई
प्रतिमा विराजमान है। दो साल पहले मूर्ति चोरों
ने यहां मां की असली प्रतिमा को खंडित
कर आभूषण चुरा लिए थे। इसके बाद यह प्रतिमा
स्थापित की गई। पुरातत्ववेत्ताओं की मानें
तो पुरानी अष्टधातु की प्रतिमा 16वीं-17वीं सदी
की थी, उस लिहाज से मंदिर उसके काफी
बाद का बनाया हुआ प्रतीत होता है।
मुख्य मंदिर में
चार दरवाजे हैैं और मुख्य दरवाजा पूरब
की ओर है। इस द्वार से निकलकर मंदिर से नीचे उतरते
ही दाहिनी ओर बलि स्थान है, जबकि बाईं
और नारियल बलि का स्थान है। इन दोनों बलि
स्थानों के बीच में मनौतियां मांगने के लिए
लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में
लटकाते हैैं। मनौतियां पूरी हो जाने पर
उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की
परंपरा है। मंदिर में उत्तरी दीवार के साथ
रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता
छिन्नमस्तिके के दिव्य स्वरूप का दर्शन
होता है। शिलाखंड में मां की तीन आंखें
हैं। इनका गला
सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। बाल
खुले हैैं और जिह्वïा बाहर निकली हुई है।
आभूषणों से
सजी मां नग्नावस्था में कामदेव और रति
के ऊपर खड़ी हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में
अपना कटा मस्तक लिए हैं। इनके दोनों ओर
मां की दो सखियां डाकिनी और वर्णिनी खड़ी हैं
तथा देवी के कटे गले से निकल रही रक्त की
तीन धाराओं में से एक-एक तीनों के मुख में
जा रहा है।
कुंडों की भी है अपनी महत्ता
यहां मुंडन कुंड पर लोग मुंडन के समय
स्नान करते हैैं जबकि पापनाशिनी
कुंड रोगमुक्ति प्रदान
करनेवाला माना जाता है। सबसे खास
दामोदर और भैरवी नदियों पर अलग-अलग बने दो गर्म
जल कुंड हैं। नाम के अनुरूप ही इस कुंड
का पानी गर्म है और मान्यता है कि यहां स्नान करने से
चर्मरोग से मुक्ति मिल जाती हैै। इसके
अलावा दुर्गा मंदिर (लोटस टेंपल) के सामने भी एक
तालाबनुमा कुंड है, जिसे कालीदह के नाम
से जाना जाता है। इसका प्रयोग भी लंबे समय तक
स्नान-ध्यान, पूजा के लिए जल लेने आदि
कार्यों के लिए होता रहा पर फिलहाल प्रयोग कम
होने के कारण कुंड का पानी गंदा हो गया है।
15 फीट का विराट शिवलिंग
मां छिन्न मस्तिका के मंदिर से सटा भगवान
शिव का मंदिर है जहां 15 फीट ऊंचा विशाल
शिवलिंग पूजा-पाठ के साथ पर्यटकों के लिए
भी खास आकर्षण का केंद्र है।
एक ही परिसर में दर्जनों मंदिर
मंदिर परिसर में ही 10 महाविद्याओं का मंदिर
अष्ट मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां
काली, तारा, बगलामुखी, भुवनेश्वरी, भैरवी,
षोडसी, छिन्नमस्तिका. धूमावती, मातंगी और
कमला की प्रतिमाएं स्थापित हैैं। इसके अलावा
भगवान सूर्य का विशाल भव्य मंदिर तथा दुर्गा
मंदिर भी आसपास ही हैैं। सफेद संगमरमर
से कमल के आकार का बना दुर्गा मंदिर अपनी भव्यता
के कारण लोटस टेंपल के नाम से भी जाना
जाता है। यहां देवी दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की
पूजा होती है। विराट मंदिर में भगवान कृष्ण
के विराट रूप की पूजा होती है। यह प्रतिमा
25 फीट की है। इन दोनों मंदिर के बीच लक्ष्मी
की आठ प्रतिमाएं - ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान
लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धन लक्ष्मी,
विजया लक्ष्मी, वीरा लक्ष्मी व जया
लक्ष्मी स्थापित हैैं। इसके अलावा मनसा,
मधुमति, पंचमुखी हनुमान, उतिष्ठ गणपति, भगवान
शिव, बटुक भैरव, सोनाकर्षण भैरव आदि
देवी-देवताओं के मंदिर भी आसपास ही हैैं।
बटुक-भैरव
मंदिर में अन्य प्रसाद के अलावा मांस-मछली,
शराब सिगरेट आदि का भी भोग लगता हैै।
बटुक-भैरव शिव का ही रूप माने गए हैैं।
उपासना के साथ मस्ती
रजरप्पा आनेवाले पर्यटक पूजा-पाठ के बाद नौका सैर का आनंद लेना नहीं भूलते। मंदिर के नीचे
दामोदर भैरवी संगम के पास नाव की सवारी की सुविधा है। नौका पर बैठ नदी की लहरों पर
दूर तक सवारी करना और झरने के पास जाकर प्राकृतिक फव्वारे को निहारते हुए तस्वीरें
खिंचाना पर्यटन के आनंद को और भी कई गुणा बढ़ा देता है।
दामोदर-भैरवी संगम
रजरप्पा के संगम स्थल में दामोदर नदी के ऊपर भैरवी नदी गिरती है। पत्थरों के बीच से
गुजरती नदियां मिलन स्थल पर झरने सा दृश्य उपस्थित करती है, लोग घंटों इस प्रकति के इस
खूबसूरत नजारे को निहारते हुए सुखद अनुभूति करते हैैं। सावन महीने में शिवभक्त संगम का जल
उठाकर पैदल यात्रा करते हुए विभिन्न शिवमंदिरों में चढ़ाते हैैं। सावन की अंतिम सोमवारी को
यहां हजारों की भीड़ उमड़ती है। छठ के मौके पर नदी के दोनों ओर के विभिन्न घाटों को
सजाया जाता है। यहां दामोदर और भैरवी को काम और रति का प्रतीक माना गया है। मां
छिन्नमस्तिका की प्रतिमा में भी मां के पैर के नीचे लेटी अवस्था में काम और रति को दिखाया
गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दामोदर को नद माना गया है, जबकि भैरवी को
नदी। दोनों नदियां यहां मिलने के बाद भेड़ा नदी के नाम से बहते हुए तेनुघाट डैम पहुंचती है।
तेनुघाट में प्रसिद्ध पनबिजली परियोजना भी है।
पंचवटी वाटिका
मंदिर के पास स्थित पंचवटी के सुंदर फूल व पेड़-पौधों के बीच पहुंचकर लोग नैसर्गिक सुख का
अनुभव करते हैैं। शांत और पवित्र वातावरण में घंटों बैठकर लोगों को समय बिताते देखा जा
सकता है। मंदिर के आयोजनों के समय भंडारे की भी व्यवस्था यहीं की जाती है। वाटिका में
पंचमुंडी आसन की लोग पूजा भी करते हैैं।
इन्हें भी जानें
मां छिन्नमस्तिका मंदिर की देखरेख मां छिन्नमस्ता न्यास समिति, रजरप्पा के नौ सदस्यीय
पुजारियों का समूह करता है। इसके अध्यक्ष अशेष पंडा व सचिव शुभाशीष पंडा है। इसके अलावा
परिसर के अन्य सभी मंदिरों की देखरेख का जिम्मा कुमुद प्रीता ट्रस्ट की ओर से किया जाता
है। मुख्य मंदिर के अलावा अन्य सभी मंदिरों का निर्माण कार्य इसी ट्रस्ट की ओर से कराया
गया है। अजय कुमार इस ट्रस्ट के मैनेजर हैैं।
पूजा का समय
मंगला आरती : सुबह 4:30 बजे।
भोग : दोपहर 12 बजे
शृंगार व आरती : शाम 7 बजे।
खास मान्यता
पंडितों का मानना है कि छिन्नमस्तिका मंदिर में पूजा करने से राहु दोष का निवारण हो
जाता है। कई श्रद्धालु इस उद्देश्य से भी यहां आते हैैं।
जरूरत हो तो करें संपर्क :
1. शुभाशीष पंडा, सचिव, मां छिन्नमस्ता न्यास समिति, रजरप्पा - 9431181621
2. अजय कुमार, प्रबंधक, कुमुद प्रीता ट्रस्ट, रजरप्पा - 9798594102
रांची से आवागमन
रांची से रजरप्पा रामगढ़ होकर सीधे जा सकते हैैं। वैसे ओरमांझी से गोला होकर व नामकुम से
मुरी-सिल्ली होते हुए भी रजरप्पा पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैैं। राज्य पर्यटन विकास निगम
ने रांची से सीधे रजरप्पा के लिए बस सेवा भी शुरू की है। इन बसों का समय रांची से सुबह
8:20 व 9:20 बजे तथा रजरप्पा से 1:30 व 3 बजे है।
नजदीकी रेलवे स्टेशनों से दूरी
बरकाकाना से 40 किलोमीटर
रांची से 80 किलोमीटर
बोकारो से 68 किलोमीटर
रुकने के स्थान
रजरप्पा आनेवाले लोग ज्यादातर अपने रुकने का कार्यक्रम आसपास के शहरों- रामगढ़, रांची,
बोकारो या धनबाद में बनाते हैैं। मंदिर से 10 किलोमीटर दूर रजरप्पा मोड़ के पास एनएच 23
पर कई रुकने के खाने-पाने के अ'छे होटल हैैं। वैसे मंदिर के पास सीसीएल और वन विभाग के गेस्ट
हाउस हैैं। मंदिर के दूसरी छोर पर जिला परिषद का डाकबंगला भी है, लेकिन इन स्थलों पर
रुकने के लिए संबंधित विभाग से अनुमति लेनी होती है। मंदिर परिसर में कई धर्मशालाएं भी हैं
जहां उतनी अ'छी सुविधाएं तो नहीं हैैं लेकिन जरूरत पडऩे पर लोग इनका इस्तेमाल करते हैैं। इन
धर्मशालाओं का ज्यादातर इस्तेमाल शादी-विवाह, मुंडन व अन्य धार्मिक प्रयोजनों से आनेवाले
लोग करते हैं। मंदिर समिति, कुमुद प्रीता ट्रस्ट व अग्रवाल समाज की ओर से अलग-अलग यज्ञ
मंडप भी बने हैैं जहां बैठकर पूजा-पाठ व अन्य संस्कार करा सकते हैैं। मंदिर के पास स्थित
छोटे-छोटे कई होटल भी हैैं जिनमें चाय-नाश्ते से लेकर खाने-पीने की पूरी व्यवस्था है। कुछ बलि
देनेवाले लोग इन्हीं होटलों में बलि का मांस बनवाकर यहीं प्रसाद ग्र्रहण करते हैैंं। मंदिर में
प्रवेश करने से पहले ही दुकानों के सामने काली स्थान में लोग गाडिय़ां खड़ी करते हैं। इसी
स्थान के ठीक बगल में बिड़ला धर्मशाला व अग्र्रवाल समाज का यज्ञ मंडप भी है।
खास उत्सव
मंदिर में दीपावली के समय कालीपूजा बड़े धूमधाम से भव्य रूप में मनाई जाती है। इसके अलावा
वैशाख चतुर्दशी को मां छिन्नमस्तिका जयंती पर भी खास आयोजन होते हैैं। इन मौकों पर सभी
मंदिरों को सजाकर विशेष पूजा-अनुष्ठान व रात्रि जागरण के आयोजन कराए जाते हैैं। नवरात्र
के समय भी यहां खास अनुष्ठान और उत्सव होते हैं। पिछले दो वर्षों से 16 जुलाई को यहां
पुनप्र्राणप्रतिष्ठा समारोह भी यज्ञ-अनुष्ठान के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। 2010 में
मूर्ति चोरी की घटना की बाद इसी दिन दूसरी मूर्ति की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई थी।
अमावस्या, पूर्णिमा व अन्य त्योहारों के मौके पर भी विशेष पूजा होती रहती है।
भीड़ से बचना हो तो
वैसे तो मां के दरबार में रोज ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है लेकिन रविवार को छुïट्टी
का दिन व शक्ति उपासना का दिन होने की मान्यता के कारण श्रद्धालुओं की लंबी कतार
रहती है। इसके अलावा शादी-विवाह व मुंडन मुहूर्त के समय यहां भारी भीड़ उमड़ती है। आम
दिनों में मंदिर में पूजा के लिए ज्यादा भीड़ दोपहर से पहले तक ही रहती है। दोपहर बाद
मंदिर में आराम से पूजा की जा सकती है।
तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध
शक्तिपीठ होने की वजह से रजरप्पा तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर से उत्तर की
ओर थोड़ी दूरी पर दामोदर नदी के ऊपर तांत्रिक घाट है जहां तांत्रिक अक्सर तंत्र साधना
करते नजर आते हैैं।
(दैनिक जागरण के परिशिष्ट 'यात्रा' के 26 अगस्त के अंक से साभार)