हार्दिक अभिनन्‍दन

देवी मां आप पर कृपालु हों। माता के दरबार में आपका हार्दिक अभिनन्‍दन।

Tuesday, December 6, 2011

छिन्‍नमस्‍तका चालीसा

       -: दोहा :-
अपना मस्तक काट कर लीन्ह हाथ में थाम।
कमलासन पर पग तले दलित हुए रतिकाम।।
जगतारण ही काम है, रजरप्पा है धाम।
छिन्नमस्तका को करूं बारंबार प्रणाम।।
-: चौपाई :-
जय गणेश जननी गुण खानी।
जयति छिन्नमस्तका भवानी।।
गौरी सती उमा रुद्राणी।
जयति महाविद्या कल्याणी।।
सर्वमंगला मंगलकारी।
मस्तक खड्ग धरे अविकारी।।
रजरप्पा में वास तुम्हारा।
तुमसे सदा जगत उजियारा।।
तुमसे जगत चराचर माता।
भजें तुम्हें शिव विष्णु विधाता।।
यति मुनीन्द्र नित ध्यान लगावें।
नारद शेष नित्य गुण गावें।
मेधा ऋषि को तुमने तारा।
सूरथ का सौभाग्य निखारा।।
वैश्य समाधि ज्ञान से मंडित।
हुआ अंबिके पल में पंडित।।
रजरप्पा का कण-कण न्यारा।
दामोदर पावन जल धारा।।
मिली जहां भैरवी भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
जय शैलेश सुता अति प्यारी।
जया और विजया सखि प्यारी।।
संगम तट पर गई नहाने।
लगी सखियों को भूख सताने।।
तब सखियन ने भोजन मांगा।
सुन चित्कार जगा अनुरागा।।
निज सिर काट तुरत दिखलाई।
अपना शोणित उन्हें पिलाई।।
तबसे कहें सकल बुध ज्ञानी।
जयतु छिन्नमस्ता वरदानी।।
तुम जगदंब अनादि अनन्ता।
गावत सतत वेद मुनि सन्ता।।
उड़हुल फूल तुम्हें अति भाये।
सुमन कनेर चरण रज पाये।।
भंडारदह संगम तट प्यारे।
एक दिवस एक विप्र पधारे।
लिए शंख चूड़ी कर माला।
आयी एक मनोरम बाला।।
गौर बदन शशि सुन्दर मज्जित।
रक्त वसन शृंगार सुसज्जित।।
बोली विप्र इधर तुम आओ।
मुझे शंख चूड़ी पहनाओ।।
बाला को चूड़ी पहनाकर।
चला विप्र अतिशय सुख पाकर।।
सुनहु विप्र बाला तब बोली।
जटिल रहस्य पोटली खोली।।
परम विचित्र चरित्र अखंडा।
मेरे जनक जगेश्वर पंडा।।
दाम तोहि चूड़ी कर देंगे।
अति हर्षित सत्कार करेंगे।।
पहुंचे द्विज पंडा के घर पर।
चकित हुए वह भी सब सुनकर।।
दोनों भंडार दह पर आये।
छिन्नमस्ता का दर्शन पाये।।
उदित चंद्रमुख शोषिण वसनी।
जन मन कलुष निशाचर असनी।।
रक्त कमल आसन सित ज्वाला।
दिव्य रूपिणी थी वह बाला।।
बोली छिन्नमस्तका माई।
भंडार दह हमरे मन भाई।।
जाको विपदा बहुत सतावे।
दुर्जन प्रेत जिसे धमकावे।।
बढ़े रोग ऋण रिपु की पीरा।
होय कष्ट से शिथिल शरीरा।।
तो नर कबहूं न मन भरमावे।
तुरत भाग रजरप्पा आवे।।
करे भक्ति पूर्वक जब पूजा।
सुखी न हो उसके सम दूजा।।
उभय विप्र ने किन्ह प्रणामा।
पूर्ण भये उनके सब कामा।।
पढ़े छिन्नमस्ता चालीसा।
अंबहि नित्य झुकावहिं सीसा।।
ता पर कृपा मातु की होई।
फिर वह करै चहे मन जोई।।
मैं अति नीच लालची कामी।
नित्य स्वार्थरत दुर्जन नामी।।
छमहुं छिन्नमस्ता जगदम्बा।
करहुं कृपा मत करहुं विलंबा।।
'विनयÓ दीन आरत सुत जानी।
करहुं कृपा जगदंब भवानी।।
        -:दोहा:-
जयतु वज्र वैरोचनी, जय चंडिका प्रचंड।
तीन लोक में व्याप्त है, तेरी ज्योति अखंड।।
छिन्नमस्तके अम्बिके, तेरी कीर्ति अपार।
नमन तुम्हें शतबार है, कर मेरा उद्धार।। 
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छिन्नमस्तका माता का बीज मंत्र
ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा




ऐसे हुई छिन्नमस्तका चालीसा की रचना

वर्ष 1996 में वासंतिक नवरात्र की षष्ठी तिथि को अचानक भगवती छिन्नमस्तका की असीम अनुकंपा और उनके मूक आदेश से छिन्नमस्तका चालीसा की रचना मेरे द्वारा हुई। उस समय मैं अपने घर पर कलश स्थापित कर श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ कर रहा था। इस रचना से पूर्व मैं रजरप्पा स्थित मंदिर पहुंच कर भगवती छिन्नमस्तका का दर्शन तक नहीं कर पाया था। इस रचना को लेकर जब मैं भगवती छिन्नमस्तका के अनन्य भक्त स्व. बिपिन बिहारी शरण के पास पहुंचा। स्व. शरण भगवती छिन्नमस्तका के अद्भुत भक्त और साधक थे। दोनों नवरात्रों के अलावा हर महीने की अमावस्या तिथि को स्व. शरण माता छिन्नमस्तका की विधिवत पूजा-अर्चना और साधना कियाकरते थे। रजरप्पा के सुन्दरीकरण में उनका योगदान अभूतपूर्व है। कुमुद ट्रस्ट की स्थापना कर उन्होंने रजरप्पा में दस महाविद्याओं के मंदिर सहित दक्षिणा काली मंदिर, सूर्य मंदिर, अपराजिता दुर्गा आदि कई मंदिरों का निर्माण कराया, जो उनकी कीर्ति पताका के रूप में स्थित हैं।
उन्होंने छिन्नमस्तका चालीसा की पांडुलिपि को देखते ही पूछा-आप रजरप्पा गये हैं? आपने भगवती छिन्नमस्तका के दर्शन किये हैं? मैंने कहा- नहीं। उन्होंने कहा-तो पहले आप रजरप्पा जाकर भगवती छिन्नमस्तका के दर्शन कीजिए और वहां पूजन के समय इस चालीसा का सस्वर पाठ करते हुए उनसे इसे प्रकाशित करने की अनुमति मांगिये। जबतक आप ऐसा नहीं करेंगे, आपकी रचना सार्थक नहीं हो पायेगी। मैंने चैत्र नवरात्र के दौरान चल रहे चंडी पाठ की पूर्णाहुति की और दशमी तिथि को रजरप्पा पहुंच गया। यह मेरी पहली यात्रा थी, लेकिन जब मंदिर पहुंचा और स्व. शरण के परामर्श के अनुसार भगवती के दर्शन और स्वरचित चालीसा का पाठ किया तो मेरे अंत:करण में एक विशेष प्रकार की प्रसन्नता का आभास हुआ। ऐसा लगा, जैसे माता जी कह रही हैं कि तुम्हारी रचना सार्थक होगी। इसे अन्य भक्तों तक पहुंचा दो। इसके बाद मैंने अपने एक मित्र के. सुमित से बात की। उन्होंने इसे लघु पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर दिया। इस पुस्तक की भूमिका में स्व. बीबी शरण के उद्गार इस प्रकार हैं-
बिहार प्रांत के हजारीबाग जिलांतर्गत रामगढ़ अनुमंडल (उस समय झारखंड प्रांत और रामगढ़ जिला का गठन नहीं हुआ था) के रजरप्पा ग्राम में अवस्थित है महाविद्या जगज्जननी छिन्नमस्तका का मंदिर। यह देवी परम कृपालु हैं-भक्तवत्सला हैं। जो जिस कामना से इनकी पूजा-अर्चना करता है, उसकी कामना छिन्नमस्तका माता शीघ्र ही पूर्ण कर देती हैं। यह तो स्वयं सिद्ध है कि भगवती छिन्नमस्तका का स्मरण, ध्यान, दर्शन, पूजन, अर्पण एवं आराधना कभी व्यर्थ नहीं होता। सौभाग्यवश भगवती की असीम अनुकंपा और मूक प्रेरणा से श्री विनय कुमार पाण्डेय द्वारा विरचित छिन्नमस्तका चालीसा पढऩे का अवसर मिला। हृदय गद्गद हो गया। इनका यह प्रयास माता के भक्तों के बीच काफी सराहा जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। यह प्रयास मां छिन्नमस्तका की महिमा के प्रचार में सार्थक योगदान माना जायेगा। मैं छिन्नमस्तका माई से विनती करूंगा किवह अपने एक भक्त के इस चालीसा रूपी निवेदन को स्वीकार करें।
बिपिन बिहारी शरण
सेवा निवृत्त मुख्य अभियंता, भवन निर्माण विभाग, बिहार सरकार एवं कुमुद ट्रस्ट रजरप्पा 

Tuesday, February 15, 2011

जय जय मां छिन्‍नमस्‍तके



जय जय मां छिन्‍नमस्‍तके
अम्बिके जय जय मां छिन्‍नमस्‍तके
संकट से त्राण करो
जग का निर्माण करो
भक्‍तों में प्राण भरो मां।
दामोदर भैरवी का संगम वह धाम है
हरी-भरी धरती का रजरप्‍पा नाम है
जहां तेरे भक्‍तों का होता हर काम है
भ‍क्‍तों में प्राण भरो मां।
सिसक रही मानवता दानवता मस्‍त है
संतों का साहस तो पूरी तरह पस्‍त है
सच्‍चा ईमानदार पल-पल संत्रस्‍त है
उनका उत्‍थान करो मां।
अंधों को आंख देती कोढी को काया
निर्धन धनवान बनें पा के तेरी माया
भक्‍तों पर पडे. नहीं दुष्‍टों की छाया
सबका कल्‍याण करो मां
जय जय मां छिन्‍नमस्‍तके।
-विनय कुमार पाण्‍डेय