हार्दिक अभिनन्‍दन

देवी मां आप पर कृपालु हों। माता के दरबार में आपका हार्दिक अभिनन्‍दन।

Sunday, March 18, 2012

Saturday, March 17, 2012

माता छिन्‍नमस्‍तका की आरती 

आइए हम छिन्‍नमस्‍ता की उतारें आरती। 
भैरवी भी भक्ति से दिनरात चरण पखारती।। 

संग है विजया जया का रक्‍त धारा बह रही। 
लोक मंगल के लिए मां कष्‍ट भारी सह रही। 
सिर हथेली पर रख सदा रख भक्‍तगण को तारती। 
आइए हम छिन्‍नमस्‍ता की उतारें आरती।। 

रक्‍त वसना सिर विखंडित हस्‍त दो तन श्‍याम है। 
छिन्‍नमस्‍ता नाम जिसका राजरप्‍पा धाम है।। 
जो भवानी दुष्‍ट दैत्‍यों का सदा संहारती। 
आइए हम छिन्‍नमस्‍ता की उतारें आरती।। 

जो सती दुर्गा प्रचण्‍डा चण्डिका भुवनेश्‍वरी। 
सत्‍व रजतम रूपिणी जय अम्बिका अखिलेश्‍वरी।। 
जो कराली कालिका हैं और कमला भारती। 
आइए हम छिन्‍नमस्‍ता की उतारें आरती।। 

आइए मां की मां की शरण में और माथा टेकिए।
दीनता दारिद्र दुख को दूर वन में फेंकिए।। 
 भक्‍त के कल्‍याण में जननी कहां कब हारती। 
आइए हम छिन्‍नमस्‍ता की उतारें आरती।।

विनय कुमार पाण्‍डेय 

Sunday, March 11, 2012

कहानी छिन्‍नमस्‍तका की 

है जिसकी महिमा अपरंपार 
करेगी जो सबका उद्धार 
प्रेम से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्‍नमस्‍तका की। 

राजरप्‍पा की धरती पर 
भैरवी-दामोदर का मेल 
हरी झाडी झुरमुट के बीच 
जानवर खेल रहे थे खेल 
सजी वस्‍त्राभूषण से दिव्‍य 
सुशोभित सुंदर गौर शरीर
जया विजया को लेकर संग 
अंबिका गयी नदी के तीर 
खिले थे सुंदर-सुंदर फूल 
सजा पेडों से वन का बाग
नदी की कल-कल जल धारा 
जगाती थी मन में अनुराग 
विहंसता था हर ओर वसंत 
वहीं लहराता आया काम। 
लगायी उसने ऐसी आग 
अंबिका हुईं गौर से श्‍याम 
न मइया सुन पाये एक बार 
उसे तब बारंबार पुकार
भक्ति से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्‍नमस्‍तका की। 

लगी करने अम्‍बा स्‍नान 
जया विजया बोली लाचार 
अम्बिके, लगी जोर से भूख
दीजिए हमें अभी आहार 
कहा देवी ने सखियो सुनो 
प्रतीक्षा तुम कर लो तत्‍काल 
मगर बोलीं सखियां बचैन 
अम्बिके भूख बनी है काल 
बहुत देवी ने समझाया 
नहीं मानी सखियों ने बात 
उठाकर खड्ग अम्बिका ने 
किया अपने सिर पर आघात 
कटा सिर आया बायें हाथ 
खून की धारा निकली तीन 
किया दो का सखियों ने पान 
तीसरी खंडित सिर में लीन 
कटा सिर पिये खून की धार 
चकित है जिसे देख संसार 
भक्ति से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्‍नमस्‍तका की। 
--विनय कुमार पाण्‍डेय