आइए हम छिन्नमस्ता की उतारें आरती।
भैरवी भी भक्ति से दिनरात चरण पखारती।।
संग है विजया जया का रक्त धारा बह रही।
लोक मंगल के लिए मां कष्ट भारी सह रही।
सिर हथेली पर रख सदा रख भक्तगण को तारती।
आइए हम छिन्नमस्ता की उतारें आरती।।
रक्त वसना सिर विखंडित हस्त दो तन श्याम है।
छिन्नमस्ता नाम जिसका राजरप्पा धाम है।।
जो भवानी दुष्ट दैत्यों का सदा संहारती।
आइए हम छिन्नमस्ता की उतारें आरती।।
जो सती दुर्गा प्रचण्डा चण्डिका भुवनेश्वरी।
सत्व रजतम रूपिणी जय अम्बिका अखिलेश्वरी।।
जो कराली कालिका हैं और कमला भारती।
आइए हम छिन्नमस्ता की उतारें आरती।।
आइए मां की मां की शरण में और माथा टेकिए।
दीनता दारिद्र दुख को दूर वन में फेंकिए।।
भक्त के कल्याण में जननी कहां कब हारती।
आइए हम छिन्नमस्ता की उतारें आरती।।
विनय कुमार पाण्डेय
Jai ma chhinmastika..sundar hai..
ReplyDeleteMac chhinmastika bharat aur iske logon ko sukh aur samridhi pradan kare.
NarayanKairo
जय माता जी की!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखते हैं आप!
माता सरस्वती को नित्य नमन करने के लिये प्रेरणास्पद श्लोक "वसन्ततिलका" वृत्त में मिला. अतीव गूढ़ रहस्य है:- कर्त्ता-कर्म स्वतः प्रस्फुटित होते हैं, लिखे नहीं जाते.
ReplyDeleteनिर्माता धन्यवादार्ह है.
छिन्नमस्तका विजयतेतराम्
Jay Ma Chhinnamsta.
ReplyDeleteJai mata ki
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