कहानी छिन्नमस्तका की 
है जिसकी महिमा अपरंपार 
करेगी जो सबका उद्धार 
प्रेम से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्नमस्तका की। 
राजरप्पा की धरती पर 
भैरवी-दामोदर का मेल 
हरी झाडी झुरमुट के बीच 
जानवर खेल रहे थे खेल 
सजी वस्त्राभूषण से दिव्य 
सुशोभित सुंदर गौर शरीर
जया विजया को लेकर संग 
अंबिका गयी नदी के तीर 
खिले थे सुंदर-सुंदर फूल 
सजा पेडों से वन का बाग
नदी की कल-कल जल धारा 
जगाती थी मन में अनुराग 
विहंसता था हर ओर वसंत 
वहीं लहराता आया काम। 
लगायी उसने ऐसी आग 
अंबिका हुईं गौर से श्याम 
न मइया सुन पाये एक बार 
उसे तब बारंबार पुकार
भक्ति से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्नमस्तका की। 
लगी करने अम्बा स्नान 
जया विजया बोली लाचार 
अम्बिके, लगी जोर से भूख
दीजिए हमें अभी आहार 
कहा देवी ने सखियो सुनो 
प्रतीक्षा तुम कर लो तत्काल 
मगर बोलीं सखियां बचैन 
अम्बिके भूख बनी है काल 
बहुत देवी ने समझाया 
नहीं मानी सखियों ने बात 
उठाकर खड्ग अम्बिका ने 
किया अपने सिर पर आघात 
कटा सिर आया बायें हाथ 
खून की धारा निकली तीन 
किया दो का सखियों ने पान 
तीसरी खंडित सिर में लीन 
कटा सिर पिये खून की धार 
चकित है जिसे देख संसार 
भक्ति से सुनिये बारंबार 
कहानी छिन्नमस्तका की। 
--विनय कुमार पाण्डेय  
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