हार्दिक अभिनन्‍दन

देवी मां आप पर कृपालु हों। माता के दरबार में आपका हार्दिक अभिनन्‍दन।

Friday, February 17, 2012

-: अथ ध्यानम् :-


प्रत्यालीढ पदां सदैव दधतीं
छिन्नं शिर: कर्तृकां।
दिग्वस्त्रां स्वकबंध शोणित सुधा
धारां पिबन्तीं मुदा
नागाबद्ध शिरोमणि त्रिनयनां
हृद्युत्पलालंकृतां।
रत्यासक्त मनोभवो परिदृढान
ध्यायेत् जवा सन्निभाम्।।1।।

दक्षेचाऽति सिता विमुक्त विकुरा
कत्र्री तथा खप्परे।
हस्ताभ्यां दधती रजोगुण भवा
नाम्नाऽपि या वर्णिनी।।
देव्याश्छिन्न कबन्धत: पतद्सृग
धारां पिबंतीं मुदा।
नागाबद्ध शिरोमणिं मनुविदा
ध्येया सदा सा सुरै:।।2।।

प्रत्यालीढ पदां कबंध विगलत रक्तं पिबंतीं मुदा।
सैषा सा प्रलये समस्त भुवनं
भोक्तुं क्षमा तामसी।।
शक्ति: साऽपि परात्परा भगवती
नाम्ना परा डाकिनी।
ध्येया ध्यान परै: सदा सविनयं
भक्तेष्ट भूतिप्रदा।।3।।